Friday 19 February 2016

Meharbaan hai sahib mera (Baba ji Sakhi 2013)

कुछ समय पहले की बात है, सेवा के जत्थे (Group) लंगर की सेवा के लिए ब्यास पहुँच चुके थे, बाबा जी उनको दर्शन देने के लिए गए, थोड़ी सी दूरी पर एक अकेला भाई खड़ा दोनों हाथ जोड़ के खड़ा था, जैसे वो लंगर की सेवा करने के लिए तरस रहा हो, बाबा जी ने उसे देखा और फिर एक जत्थे (Group) से पूछा कि क्या वो भाई उनके साथ आया है? उन्होंने मना कर दिया ।
फिर बाबा जी ने दूसरे जत्थे से पूछा, उन्होंने ने भी मना कर दिया, इसी तरह से सभी जत्थों ने मना कर दिया, तब बाबा जी ने फ़रमाया कि अगर हम इसे अपने साथ ले लें तो किसी की कोई ऐतराज़ तो नहीं है, सबने कहा कि नहीं
बाबा जी ने सेवादारों से
कहा कि इस भले आदमी को मेरी कोठी में ले आओ, सेवादार उसे बाबा जी कोठी में ले गए, वो आदमी रो रहा था और सोच रहा था की कहीं उस से कोई गल्ती तो नहीं हो गयी?
जब बाबाजी उससे मिले तो बाबा जी ने पूछा कि क्या लंगर की सेवा की चाहत है? तो वो बोला कि हाँ जी है, बाबा जी ने पूछा कि क्या करते हो? तो वो बोलता है कि मैं अकेला हूँ, कोई नहीं है इसलिए मैं तो हमेशा लंगर की सेवा कर सकता हूँ, बाबा जी ने उसे अपने गले से लगाया और सेवादारों को बुला के कहा कि आज से हमारा खाना ये बनायेंगे, वो बोला कि जी खाना बनाना तो मुझे आता ही नहीं, तो बाबा जी बोलते हैं की कोई बात नहीं हम सिखायेंगे
तो उस दिन से वो बाबा जी के लिए खाना बनाने लगा, एक दिन बाबा जी ने देखा की वो दस्ताने पहन के खाना बना रहा है तो उसको बोलते हैं कि मुझे खाना बिना दस्तानो के बना कर दो, मालिक की इतनी कृपा हुई उस पर कि बाबा जी जहाँ भी जाते है, उसे अपने साथ लेकर जाते हैं और उसके हाथ से बना खाना ही खाते हैं
मेहरबान है साहिब मेरा !!!!
जिसका कोई नहीं होता उसका सतगुरु होता है
–राधा स्वामी जी

No comments:

Post a Comment